Thursday, 29 March 2012

KABIR VANI - 2

DUNIYA MEIN HUM AAYE HAI TOH JEENAA HI PADEGA... 
DEAR डॉ.दिवाकरजी का यह केस पढके फिर कबीरजी के एक दोहे की याद आई... 

अपने कर्म की गति मैं क्या जानू ? मैं क्या जानू ?बाबा रे || २||

नर मरे किछु काम न आवे
पशु मरे दस कांझ सवारे || २||

अपने कर्म की गति मैं क्या जानू ? मैं क्या जानू ?बाबा रे || २||

हाड़ जले जैसे लकड़ी का तुला |
केश जले जैसे घांस का पुला ||२||

अपने कर्म की गति मैं क्या जानू ? मैं क्या जानू ?बाबा रे || २||.....


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