Wednesday, 4 April 2012

IMPORTANCE OF DOSHA IN PRACTICE

Importance of Dosa in Practice

बात उन दिनों की है जब मैंने प्रक्टिस शुरू ही की थी.मैंने अपनी इंटर्नशिप केरल से की है तो मेरा डोसा प्रत्निक चिकित्सा का ज्यादा असर है,यानि आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार व्याधि के हेतु की ही चिकित्सा करनी चाहिए न की व्याधि की.
एक औरत जिसकी उम्र २५ वर्ष होगी,मेरे क्लिनिक पर आयी.उसे बताया की पिछले ७ दिने से उसके बाल बहुत झड रहे है,और २ दिन से तो २५% झड रहे है.उसे और कोई बीमारी न थी.हर कुछ सामान्य था.मुझे उसका कोई कारण पता न लग पाया.तो मैंने व्याधि हेतु चिकित्सा देने के लिए नरसिम्हा रसायन व् कुन्दल्कांथी तेल देने लगा.परन्तु अचानक लगा की यह तुम क्या कर रहे.मैं फिर मरीज की परीक्षा करने लगा.तो जब मैंने उसकी नाडी परीक्षा की तो पाया की उसका पित बहुत बड़ा हुआ था.बस फिर क्या था,मुझे हेतु मिल गया.तब मैंने हेतु विपरीत चिकित्सा के लिए एक औषधि के बारे में सोच कर कुटकी का चयन किया.इसके इलावा और कुछ न दिया.मरीज को भी कुछ विश्वास नहीं होता देख मैंने उसको विश्वास दिलाया की इससे निसंदेह लाभ होगा.मैंने १ रति की केवल ६ पुडिया लगा कर दी.सच मानो तो मैं आयुर्वेद के सिद्धांतों की सत्यता करने चला था.......


http://ayurvedaconsultants.com/caseshow.aspx?ivalue=engoogle2502

No comments:

Post a Comment