"अर्कन्यग्रोधखदिरकरंजककुभादिकम् ।
प्रातर्भुक्त्वा च मृव्दग्रं कषायकटुतिक्तकम् ॥
भक्षयेद्दन्तपवनं दान्तमांसान्यबाधयन् ॥"
(अष्टांगहृदय / सुत्र / २ / श्लोक क्र. १,२)
आयुर्वेदने कषाय, कटु और तिक्त रस से दंतधावन ( ब्रश ?) कहा है ।
लेकिन आजकल दंतमंजन इस्तिमाल करना ग्राम्य समजा जाता है ।
हम कई बार देखते है कि देहाती लोग , विषेशतः महिलाये, जलायी हुई तमाखु से दाँत माँजते है । उन्हे हम किस तरहसे देखते है वह मुझे बताने कि जरुरत नही है । दो गलत शब्द उनके बारे मे कहकर हम मन कि शांती पाते है ।
पर अब निचे दिया हुआ आप पढेंगे तो बाकि लोग हमारी तरफ किस तरह से देखेंगे ये सोचनेवाली बाब़ा .......
http://ayurvedaconsultants.com/caseshow.aspx?ivalue=engoogle3691
प्रातर्भुक्त्वा च मृव्दग्रं कषायकटुतिक्तकम् ॥
भक्षयेद्दन्तपवनं दान्तमांसान्यबाधयन् ॥"
(अष्टांगहृदय / सुत्र / २ / श्लोक क्र. १,२)
आयुर्वेदने कषाय, कटु और तिक्त रस से दंतधावन ( ब्रश ?) कहा है ।
लेकिन आजकल दंतमंजन इस्तिमाल करना ग्राम्य समजा जाता है ।
हम कई बार देखते है कि देहाती लोग , विषेशतः महिलाये, जलायी हुई तमाखु से दाँत माँजते है । उन्हे हम किस तरहसे देखते है वह मुझे बताने कि जरुरत नही है । दो गलत शब्द उनके बारे मे कहकर हम मन कि शांती पाते है ।
पर अब निचे दिया हुआ आप पढेंगे तो बाकि लोग हमारी तरफ किस तरह से देखेंगे ये सोचनेवाली बाब़ा .......
http://ayurvedaconsultants.com/caseshow.aspx?ivalue=engoogle3691
No comments:
Post a Comment